सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में भगदड़, दो महिलाओं की मौत

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

एक भव्य धार्मिक आयोजन, भारी उमस, और अनियंत्रित भीड़ का घातक मेल… नतीजा: कुबेरेश्वर धाम में भगदड़, दो महिलाओं की मौत, कई घायल।

कब और कैसे हुआ हादसा?

हादसा मंगलवार दोपहर उस वक्त हुआ जब सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। बुधवार 6 अगस्त को निकलने वाली प्रदीप मिश्रा की अगुआई वाली कांवड़ यात्रा से ठीक पहले हज़ारों लोग धाम में दर्शन और भंडारे के लिए पहुंच गए।

सीवन नदी घाट और मंदिर परिसर में भारी उमस और भीड़ के कारण हालात बेकाबू हो गए। ठहरने की जगहें, भंडारे और दर्शन की कतारें भर गईं। इसी दौरान अफरा-तफरी मच गई, जिसमें दो महिलाओं की मौत और छह अन्य घायल हो गए।

प्रशासनिक तैयारी या सिर्फ इवेंट मैनेजमेंट का ढकोसला?

सीहोर ज़िले की एडिशनल एसपी सुनीता रावत ने पुष्टि की कि हादसे में दो मौतें और कई घायल हुए हैं। प्रशासन का दावा था कि रात से तैयारी शुरू करनी थी, लेकिन भक्तों का सैलाब दोपहर में ही टूट पड़ा

भीड़ नियंत्रण, पानी की उपलब्धता, प्राथमिक चिकित्सा और धूप से बचाव जैसे जरूरी इंतज़ाम पूरी तरह नदारद थे। नतीजा – लोग चक्कर खाकर गिरे, बीपी लो, घबराहट, और भगदड़।

धर्म का आयोजन या भीड़ का अनियंत्रित शो?

प्रदीप मिश्रा, जो खुद को संत कहते हैं, हर साल विशाल कांवड़ यात्रा निकालते हैं। लाखों भक्त पहुंचते हैं – पर जब प्रशासन और आयोजक की टीम में तालमेल ना हो, तो आयोजन ‘भक्ति का उत्सव’ नहीं, एक संवेदनहीन तमाशा बन जाता है।

मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया – “घटना दुर्भाग्यपूर्ण है”

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा –“मुझे जानकारी मिली है. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। अफ़सरों को निर्देश दिए गए हैं कि जांच हो और भविष्य में ऐसे हादसे न हों।”

सवाल ये है कि – क्या हर बार घटना के बाद यही लाइन दोहराई जाएगी?

Faith बड़ी चीज़ है, लेकिन Planning उससे भी बड़ी!

हर साल ऐसे आयोजन होते हैं, और हर साल “अनुमान से ज़्यादा भीड़” वाली लाइन ख़बरों में रहती है। लेकिन अब ज़रूरत है – faith के साथ fact-based planning की। श्रद्धा से भीड़ नहीं रोकी जा सकती, पर सिस्टम से हादसे ज़रूर रोके जा सकते हैं।

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