
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया। इस्तीफे की वजह “स्वास्थ्य” बताई गई, लेकिन कांग्रेस इस तर्क को हजम करने को तैयार नहीं। अशोक गहलोत ने तीखा तंज कसते हुए कहा, “स्वास्थ्य कारण नहीं हो सकता, वजह कुछ और है जो सामने नहीं आई।”
राजनीति की GPS: बीजेपी को फिर चाहिए जाट ‘लोकेशन’
धनखड़ न केवल संवैधानिक पद पर थे बल्कि बीजेपी के लिए जाट समुदाय का बड़ा चेहरा भी। ऐसे में उनका इस्तीफा सिर्फ ‘निजी’ नहीं माना जा सकता। राजस्थान में जाट समुदाय पर पकड़ बनाना बीजेपी की रणनीति का हिस्सा रहा है। लेकिन अब खाली हुई यह ‘कुर्सी’ बीजेपी के लिए चिंता का सबब है।
‘किसान का बेटा’ गया तो कौन आएगा?
कांग्रेस नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने निशाना साधते हुए कहा, “बीजेपी किसानों के प्रति संवेदनशील नहीं है।” किसानों का बेटा अगर पार्टी से नाराज़ हुआ है तो यह महज़ इस्तीफा नहीं, सियासी संदेश है। सवाल है – अब बीजेपी किसे आगे करेगी जो न केवल पार्टी को बल्कि जाट समाज को भी संतुष्ट कर सके?
राजस्थान की सियासत में ‘जाट शक्ति’ का नया अध्याय?
झुंझुनूं के किठाना गांव से दिल्ली के रायसीना हिल्स तक पहुंचे धनखड़ अब फिर गांव की ओर लौटे हैं। लेकिन क्या ये वापसी सियासी ‘रिट्रीट’ है या अगली लड़ाई की तैयारी? जाट राजनीति के जानकारों का कहना है कि बीजेपी को अब धनखड़ जैसा चेहरा खोजना पड़ेगा जो न केवल राजनीतिक अनुभव रखता हो बल्कि समुदाय में सम्मान भी।
‘राजनीति का BP लो, इस्तीफा लो’
जब सत्ता के गलियारे में अचानक कोई दरवाज़ा खुलता है, तो समझो कहीं कोई खिड़की बंद हुई है। इस्तीफा देकर धनखड़ ने ऐसा पत्ता फेंका है कि दिल्ली से जयपुर तक पत्ते उड़ रहे हैं।
और बीजेपी… वह अब “जाट मैनेजमेंट” के नए फॉर्मूले पर रिसर्च कर रही है – शायद कोई “StartUp India” वाला समाधान निकले!
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