
1950 के दशक में ईरान ने जब अपने परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी, तब न उसके पड़ोसी चौंके थे, न ही दुनिया ने माथा पीटा। अमेरिका खुद उसे टेक्नोलॉजी दे रहा था, क्योंकि शाह मोहम्मद रजा पहलवी उसके “फेवरेट्स” में थे। लेकिन फिर शाह गए, मुल्ला आए… और कहानी ने यू-टर्न ले लिया।
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2003 में खुफिया खुलासा, दुनिया ने पकड़ ली टेंशन
2000 के दशक की शुरुआत में जैसे ही IAEA की रिपोर्ट आई कि ईरान चुपके-चुपके कुछ बड़ा पकाने में लगा है, तब से दुनिया सतर्क हो गई। रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि 2003 तक ईरान “हथियार बनाने के करीब” था। और तभी से इस पॉट में खौलने लगी जिओ-पॉलिटिकल बिरयानी।
JCPOA समझौता: बना भी, बिगड़ा भी
2015 में बना ऐतिहासिक JCPOA समझौता, जिसमें ईरान ने कहा – “ठीक है भाई, हम शांत रहते हैं, तुम प्रतिबंध हटाओ।” लेकिन ट्रंप जी को ‘डील’ पसंद नहीं आई। उन्होंने 2018 में समझौते से बाहर निकलकर तेहरान पर दोबारा प्रतिबंधों का लहसुन छिड़क दिया।
यूरेनियम संवर्धन: ईरान ने कहा, “अब हम भी देखेंगे”
अब आया ईरान का ‘रिएक्ट मोड’ – पहले 5%, फिर 20%, और फिर सीधा 60% यूरेनियम संवर्धन। मतलब, अब कोई कहे कि ईरान सीरियस नहीं है, तो सेंट्रीफ्यूज हंसने लगेंगे। IAEA कहता है – 60% संवर्धन तो हथियार-ग्रेड 90% से बस एक ‘नैनो डिस्टेंस’ पर है।
इजरायल ने किया हमला, अमेरिका ने फॉलोअप मारा
इजरायल को लगा कि अब बहुत हो गया – तो उसने हमला कर दिया ईरान पर। शनिवार की रात को धमाके हुए। अमेरिका ने भी बम गिरा दिए। और फिर हुआ बड़ा बवाल – रूस, चीन समेत कई देशों ने कहा – “भाई, ये क्या तरीका है डिप्लोमेसी का?”
क्या ईरान वाकई बना रहा है परमाणु बम?
IAEA कहता है – “नहीं!”
अमेरिका के खुफिया अधिकारी कहते हैं – “नहीं!!”
ईरान कहता है – “हरगिज़ नहीं!!!”
और खामेनेई साहब तो बाकायदा एक फतवा देकर बोले – “परमाणु बम हराम है!”
लेकिन इजरायल कहता है – “बात कुछ गड़बड़ है दया!”
सच यही है कि जब तक 90% संवर्धन नहीं होता, और जब तक मिसाइल पर हथियार नहीं चढ़ता – परमाणु बम सिर्फ ‘थ्योरी’ में होता है।
अब आगे क्या?
ईरान कहता है कि इजरायली हमले से उसकी डिप्लोमैसी को झटका लगा है। और अमेरिका को “इजरायली अपराधों का साथी” बताया गया है। इधर वियना में बातचीत की फाइलें अब तक धूल खा रही हैं।
“60% यूरेनियम है, लेकिन 100% हथियार नहीं!”
ईरान का परमाणु कार्यक्रम अब भी रहस्य बना हुआ है। कोई कहता है ये सिर्फ दबाव की रणनीति है, कोई कहता है ये धीरे-धीरे बम की ओर बढ़ रहा है। लेकिन जब तक आईएईए को कोई साफ-साफ सबूत नहीं मिलता, तब तक “परमाणु खतरा” सिर्फ एक वैश्विक नाटक है – जिसमें किरदार हैं, स्टेज है, और बहुत सारा धुआं है… लेकिन आग कहां है, ये किसी को नहीं पता!
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