
रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका ने फिर से भारत को आंख दिखाई — “तेल मत खरीदो रूस से, वरना…”। लेकिन भारत ने साफ कह दिया – “तेल हमारा ज़रूरत है, आपकी चेतावनी नहीं!”
स्टीफन मिलर, ट्रंप के टॉप एडवाइजर, बोले – “भारत रूस से तेल लेकर जंग को फंड कर रहा है!”
भारत ने जवाब में “Thanks for your concern, but no thanks!” वाला रुख अपनाया।
अमेरिका की “तेल पॉलिटिक्स” और भारत का “रियल पॉलिटिक्स”
स्टीफन मिलर की भड़ास साफ दिखाती है कि अमेरिका चाहता है कि दुनिया रूस से दूरी बनाए। लेकिन भारत, जो आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी तेल खपत वाली अर्थव्यवस्था है, उसकी प्राथमिकता है – जनता की जेब और एनर्जी सिक्योरिटी।
“हमारा रिश्ता रूस से डील का है, डील पर डिप्लोमेसी नहीं होगी!”
ट्रंप की टैरिफ धमकी – “100% टैक्स ठोंक देंगे!”
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अगर रूस सीजफायर पर नहीं आया तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। मतलब, तेल महंगा कर देंगे ताकि कोई ना खरीदे।
लेकिन भारत का जवाब?
“हमने पहले भी टैरिफ झेले हैं, अब भी झेल लेंगे। लेकिन तेल नहीं छोड़ेगे!”
मोदी-ट्रंप का ब्रोमांस और विदेश नीति की रियलिटी
स्टीफन मिलर ने बात संभालते हुए कहा – “Trump-Modi रिलेशन अच्छे हैं।”
यानी, धमकी के बाद थोड़ा “मिठास” घोलने की कोशिश — लेकिन भारत तो डिप्लोमैसी की “हल्दी-नमक-सिरका” सब जानता है।
रूस-यूक्रेन जंग पर ट्रंप का 8 अगस्त Ultimatum
ट्रंप ने अपने दूत स्टीव विटकॉफ को मास्को भेजा है, बोलकर – “8 अगस्त तक सीजफायर हो जाना चाहिए।”
अब देखना ये है कि पुतिन सुनते हैं या फिर अमेरिका को सुनना पड़ता है – “तेल गया हाथ से!”
भारत का स्टैंड साफ है – हम ऊर्जा कूटनीति में नेहरू युग नहीं, “नया भारत” लेकर आए हैं। रूस से तेल खरीदना न ज़िद है, न ज़रूरत – ये रणनीति है।
और अमेरिका? वो अब ट्वीट कर-कर के थक चुका है।
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