
साल 2023 में मोदी जी अमेरिका पहुंचे थे, तो माहौल कुछ ऐसा था जैसे भारत वर्ल्ड कप जीतकर आया हो। जो बाइडन गले लगे, संसद में तालियां बजीं और दुनिया ने कहा – “India is the new global BFF!”
लेकिन फिर आ गए डोनाल्ड ट्रंप – और साथ लाए टैक्स की ऐसी रिमझिम कि रिश्ता भीग गया… बिल्कुल चीन की फाइलिंग की तरह भारी और उलझा हुआ!
ट्रंप का नया मंत्र – दोस्ती का फायदा उठाओ, फिर उस पर टैरिफ लगाओ
ट्रंप बोले – “भारत, तुम रूस से तेल ले रहे हो। ये हमारे उस मिशन के खिलाफ़ है जिसमें हम रूस को अकेला छोड़ना चाहते हैं।”
अब भाई, भारतीय जनता को जब 130 रुपए लीटर पेट्रोल मिले तो वो ‘सोलिडैरिटी’ से ज्यादा ‘सस्ता डीज़ल’ चुनेगी न!
पर ट्रंप को लगता है – “यह धोखा है, और इसका इलाज है: टैरिफ़ डोज़!”
50% टैरिफ़ – मतलब ट्रंप बोले, “एक्सपोर्ट नहीं, एक्सिट करो”
भारत के 50% से ज़्यादा निर्यात पर अमेरिका ने टैक्स का हथौड़ा चलाया है।
FIEO वाले बोले – “ये तो सरप्राइज़ अटैक है। ऐसा तो KBC में भी नहीं होता!”
GTRI ने कहा, भारत को शांत रहना चाहिए। और मोदी सरकार की प्रतिक्रिया? बिल्कुल सीरियल की सास जैसी – “हम इस अन्याय को नहीं सहेंगे।”
भारत-चीन: क्या ट्रंप की वजह से होगा नया दोस्ताना?
अब ज़रा सोचिए – SCO समिट में मोदी जी शी जिनपिंग के साथ मंच साझा करें और फोटो खिंचवाएं।
ट्रंप को बैठे-बिठाए FOMO हो जाएगा! ट्रंप भारत को दूर कर रहे हैं और चीन के पास धकेल रहे हैं। मतलब ट्रंप का फार्मूला – “दबाओ, फिर देखो कैसे दोस्त दुश्मन के दोस्त बनते हैं।”
तेल नहीं छोड़ सकते, क्योंकि ‘ऑटो’ वालों की कसम है!
अमेरिका चाहता है कि भारत रूसी तेल लेना बंद कर दे। लेकिन मोदी सरकार साफ कह चुकी है – “हम अपनी एनर्जी सिक्योरिटी से समझौता नहीं करेंगे।”
क्योंकि देश में चुनाव हो या नहीं, स्कूटी का पेट्रोल फुल होना ज़रूरी है। ट्रंप को ये समझना होगा कि रूस से तेल लेना, भारत की ज़रूरत है – लग्ज़री नहीं।
अमेरिका-पाकिस्तान की अचानक मोहब्बत: कहीं ये “बाउंसर” तो नहीं?
उधर ट्रंप पाकिस्तान के साथ एक ट्रेड डील कर बैठे। शहबाज़ शरीफ़ तो ऐसे खुश हुए जैसे लॉटरी लग गई हो। लेकिन जानकार बोले – “ये बस एक ट्रम्प कार्ड है – भारत पर दबाव बनाने का।”
वैसे, पाकिस्तान में तेल तो है नहीं, और स्टेबिलिटी? जितनी ट्रंप के ट्वीट में लॉजिक होती है!
क्या ये असली Trade War है या बस डील की धमकी?
अब सवाल ये है – क्या ट्रंप वाकई 50% टैरिफ लागू करेंगे, या ये सिर्फ़ एक सौदेबाज़ी का ट्रेलर है?
भारत बोले: हम अकेले भी काफी हैं, लेकिन साथ हो तो इज़्ज़त वाली बात हो!
भारत अब साफ कह रहा है – “साझेदारी में सौदा नहीं, सम्मान होना चाहिए।” मोदी सरकार ने बहुत सोच-समझकर प्रतिक्रिया दी है – ना ज़्यादा गरमी, ना ज़्यादा ठंडी – एकदम फ्रिज के मोड पर!
यानी, हम अब ‘ग्लोबल यूजर’ नहीं, ‘ग्लोबल पावर’ हैं।
अगर ट्रंप यूं ही चलेंगे, तो भारत “No Entry” का बोर्ड लगा देगा!
डोनाल्ड ट्रंप की ये “टैरिफ तानाशाही” अगर यूं ही चलती रही, तो भारत को मजबूरन एक बैलेंस्ड, अमेरिका-फ्री नीति अपनानी पड़ सकती है।
चीन से दोस्ती हो या रूस से डील – भारत अब किसी के इशारे पर नहीं नाचेगा।
और ट्रंप साहब, ये 2025 है – दोस्ती में भी अब कैशबैक चाहिए, सिर्फ़ कैरेक्टर नहीं!
तो सवाल उठता है – क्या ट्रंप वाकई भारत से नाराज़ हैं या बस “डील की डील” खेल रहे हैं?
जो भी हो, भारत अब आंखों में आंखें डालकर बात करता है। और अगर अमेरिका रिश्ते बचाना चाहता है, तो ट्रंप को भी ट्वीट से ज़्यादा ट्रस्ट दिखाना होगा!