
मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने एक बार फिर अपने बेबाक बयान से न केवल सुर्खियां बटोरीं, बल्कि सोशल मीडिया और सियासी गलियारों में बहस भी छेड़ दी। संजय राउत की किताब ‘नरकतला स्वर्ग’ के विमोचन समारोह में जावेद अख्तर ने कहा:
“अगर मेरे पास सिर्फ़ दो विकल्प हों — पाकिस्तान या जहन्नुम (नरक), तो मैं नरक में जाना पसंद करूंगा।”
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क्या था बयान का पूरा संदर्भ?
इस कार्यक्रम के दौरान जावेद अख्तर ने कट्टरपंथ और दोहरी आलोचना पर बात करते हुए कहा कि वो अक्सर दोनों तरफ़ के लोगों से गालियां खाते हैं — कुछ उन्हें ‘काफिर’ कहते हैं और कुछ ‘जिहादी’।
उन्होंने हंसते हुए चुटकी ली:
“अगर एक पक्ष रुक गया, तो मुझे लगने लगेगा कि शायद मैं कुछ ग़लत कर रहा हूं।”
सोशल मीडिया पर मिला मिला-जुला रिस्पॉन्स:
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कई लोगों ने जावेद अख्तर की आजाद सोच और निर्भीक अभिव्यक्ति की सराहना की।
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वहीं, कुछ कट्टर विचारधारा वाले यूज़र्स ने उन्हें “भारत-विरोधी” और “सेकुलर एजेंडा फैलाने वाला” कहा।
‘नरकतला स्वर्ग’ क्या है?
संजय राउत की यह किताब उनके ED हिरासत में बिताए गए 3 महीनों की कहानी है। इसी किताब के लॉन्च पर जावेद अख्तर पहुंचे थे और यह बयान दिया।
बोलने की आज़ादी या जानबूझकर विवाद?
जावेद अख्तर हमेशा से उन चंद कलाकारों में रहे हैं, जो राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं। उनका यह बयान पाकिस्तान के कट्टरपंथ और असहिष्णुता के खिलाफ एक व्यंग्यात्मक तीर है, ना कि केवल मज़ाक।
यह बयान भारत-पाक रिश्तों में चल रही तनावपूर्ण स्थितियों और धार्मिक उन्माद पर भी करारा कमेंट है।
जावेद अख्तर का यह बयान कई स्तरों पर पढ़ा जा सकता है — तंज, सच्चाई, व्यंग्य और साहस। उन्होंने एक बार फिर दिखा दिया कि बोलने की आज़ादी का असली मतलब क्या होता है।
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