हार्वर्ड बनाम ट्रंप: जब शिक्षा बनी ट्रंप के ‘टैरिफ़’ का शिकार, हुआ पलटवार

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

अमेरिका की दुनिया की मशहूर शिक्षण संस्था हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया है। वजह? ट्रंप सरकार ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दाखिले पर रोक लगा दी है! लगता है अब ट्रंप प्रशासन भी समझ गया कि पढ़ाई भी अब कोई “फ्री-फॉर-ऑल” नहीं रह गई है।

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गृह सुरक्षा मंत्री क्रिस्टी नोएम ने अपनी ‘सच्चाई’ एक्स पर ट्वीट किया कि प्रशासन ने हार्वर्ड के अंतरराष्ट्रीय छात्र दाखिला कार्यक्रम को “कानून का पालन न करने” के कारण रद्द कर दिया है। मतलब साफ है — अगर नियम-कानून की किताब से बाहर गए, तो “दाखिला बंद”!

हार्वर्ड ने इस फैसले को “गैरकानूनी” बताया है। यानी ट्रंप प्रशासन का ये फैसला ऐसा है जैसे कोई बड़ा स्कूल बच्चों को कह दे कि “तुम अब हमारे यहाँ नहीं पढ़ोगे, क्योंकि तुम विदेश से हो!” ये तो बिल्कुल वैसे ही है जैसे होमवर्क न करने पर टीचर बच्चों को क्लास से बाहर निकाल दे।

अंतरराष्ट्रीय छात्रों की चिंता

हार्वर्ड के मुताबिक़, पिछले साल छह हज़ार से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने दाखिला लिया था, जो कुल छात्रों का 27% है। सोचिए, अगर ये छात्र न आएं तो कैसा सुनसान लगेगा वहाँ का माहौल। शायद लाइब्रेरी में सिर्फ किताबें ही पढ़ेंगी, छात्र नहीं।

इसका मतलब साफ है — ट्रंप प्रशासन का ये कदम न सिर्फ़ छात्रों के भविष्य पर सवाल उठाता है, बल्कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों की विश्वसनीयता पर भी।

ट्रंप प्रशासन की नई ‘पढ़ाई नीति’

लगता है ट्रंप अब पढ़ाई को भी अपनी ट्रेड वार नीति में शामिल करना चाहते हैं — “जो पढ़ाई अमेरिका में बनी, वही चलेगी!” बाकी तो टैक्स, टैरिफ़ और ट्रेड वॉर, अब “एजुकेशन वॉर” भी शुरू हो गया है।

ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से साफ़ होता है कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए अमेरिका के द्वार अब बंद होने लगे हैं। और हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थान इस फैसले के खिलाफ क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। छात्रों के लिए ये समय चुनौतीपूर्ण है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही शिक्षा का दरवाज़ा फिर से खुल जाएगा, जहां देश-विदेश के बच्चे ज्ञान की दुनिया में मिलकर उड़ान भर सकें।

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