
1971 में रिलीज़ हुई “हाथी मेरे साथी” एक ऐसी फिल्म है जो न केवल राजेश खन्ना की दमदार एक्टिंग के लिए जानी जाती है, बल्कि अपने हाथियों और जंगली जानवरों के साथ दोस्ती के लिए भी मशहूर हुई।
इस फिल्म को एम.ए. थिरुमुगम ने डायरेक्ट किया, जबकि पटकथा लिखी थी हिंदी सिनेमा के दो जादूगरों, सलीम-जावेद ने।
अगर आपने सोचा कि ये कहानी सिर्फ रोमांस और ड्रामा है — नहीं, इसमें आपके दोस्त हाथी भी शामिल हैं, जो आपकी तुलना में ज्यादा ट्रबल शूटर साबित होते हैं।
कहानी: अनाथ राजू और उसके चार हाथी
राजू, एक अनाथ लड़का, अपने चार हाथियों के साथ शहर के मोहल्लों में दिखाता है जादू। वो ना केवल जंगली जानवरों का मालिक है, बल्कि उनके सबसे अच्छे दोस्त भी। और यही दोस्ती बनती है दिलचस्प कहानी का केंद्र। राजू का प्यार तनु से होता है, पर तनु के अमीर पिता रतनलाल को ये हाथी-वाली दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं।
और फिर शुरू होता है “परिवार या हाथी” वाला क्लासिक ड्रामा, जहाँ राजू की वफादारी को असली परख मिलती है।
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इस फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का कमाल है, और गाने आज भी दिल को छू जाते हैं।
“धक धक कैसे चलती है गाड़ी” और “दिलबर जानी चली हवा मस्तानी” जैसे गीत आज भी रेडियो पर बजते हैं।
मज़े की बात ये है कि गाने की शूटिंग के दौरान तनुजा को हाथियों के प्यार का इतना सामना करना पड़ा कि शूटिंग सेट पर असली जंगली ड्रामा भी हुआ।
बॉक्स ऑफिस धमाका: 1971 की सबसे बड़ी हिट
राजेश खन्ना के करियर के बुलंदियों पर बनी ये फिल्म 1971 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शुमार है। भारत में कमाई के साथ-साथ सोवियत संघ में भी इसने तहलका मचाया — जहाँ 3 करोड़ से ज़्यादा टिकट बिक गईं।
तो समझिए, हाथी केवल जंगल में ही नहीं, बॉक्स ऑफिस पर भी राजा थे।
जब राजू ने परिवार की जगह हाथी चुने!
अब सोचिए, एक पति जो अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़कर चार विशाल हाथियों के पीछे दौड़े!
वैसे, बॉलीवुड ड्रामा में ऐसी कहानियाँ आम हैं, लेकिन यह फिल्म दिखाती है कि ‘हाथी मेरे साथी’ भी हैं, लेकिन पत्नी और बच्चे ‘मेरे’ क्यों नहीं?
अंत में, हाथी रामू ही परिवार को बचाने के लिए अपनी जान दे देता है — मतलब यहाँ दोस्ती की क़ीमत जान तक होती है, पर परिवार को संभालना हाथियों पर छोड़ दिया।

पुरस्कार और यादें
फिल्म ने गीतकार आनंद बख्शी को एसपीसीए पुरस्कार दिलाया, जो बताता है कि हाथियों के प्रति प्यार सिर्फ स्क्रीन तक सीमित नहीं था।
और तनुजा की यादें भी मजेदार हैं — कैसे उनकी बेटियाँ फिल्म देखकर डर गईं क्योंकि उन्होंने सोचा था कि उनकी माँ ने हाथी को मार डाला!
“हाथी मेरे साथी” एक ऐसी फिल्म है जो ज़माने की चली आ रही बॉलीवुड ड्रामे, दोस्ती, परिवार और जंगली जानवरों के बीच संतुलन खोजती है।
अगर आप 70 के दशक के उस प्यारे बॉलीवुड जादू को महसूस करना चाहते हैं, तो इसे जरूर देखें।
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