40 किलो की मां और भूखा बच्चा – ग़ज़ा में जिंदगी का वज़न घटता जा रहा है

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (MSF) की ताज़ा रिपोर्ट ने दुनिया को झकझोर दिया है। दक्षिणी और उत्तरी ग़ज़ा में ऐसे कुपोषण के मामले सामने आ रहे हैं, जो पहले कभी नहीं देखे गए। मेडिकल क्लिनिक में हर दिन भूख से लड़ती मांएं और बच्चों की भीड़ बढ़ रही है, लेकिन जो नहीं बढ़ रही, वो है खाने की सप्लाई।

बच्चों का वज़न गिरा, सरकारें चुप – ये भूख किसकी जिम्मेदारी है?

ग़ज़ा के क्लीनिक में इस वक्त 500 से ज़्यादा बच्चे और 700 से ज़्यादा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं इलाज करा रही हैं। कई महिलाओं का वज़न 40 किलो से भी कम है। डॉक्टरों का कहना है – “मां बच्चे को दूध नहीं, सिर्फ आँसू पिला रही है।” पेट भरने की जगह, अब मांओं की गोद सूनी होती जा रही है।

कुपोषण का ग्राफ ऊपर, इंसानियत का ग्राफ नीचे

ग़ज़ा सिटी क्लिनिक में मई से जुलाई तक मरीजों की संख्या चार गुना बढ़ चुकी है। डॉक्टर मोहम्मद अबू मुग़ैसिब ने कहा – “लोगों को जानबूझकर भूखा रखा जा रहा है।” ये सुनकर शायद राजनीति भी शरमा जाए, क्योंकि यहां भूख accidental नहीं, apparently intentional लग रही है।

ट्रक बंद, टैंकर ठप – भोजन से बड़ी बन गई बाड़ाबंदी

2023 तक ग़ज़ा में हर दिन औसतन 500 ट्रक खाने-पीने का सामान लाते थे। लेकिन अब 5 महीनों में मुश्किल से 500 ट्रक पहुंचे हैं। खाना या तो है नहीं, या इतना महंगा कि बच्चे सिर्फ विज्ञापन में देख सकते हैं। अब भूख मिटाने का साधन नहीं बचा, और सरकारों के पास बयान भी copy-paste लगते हैं।

इसराइली रिटायर्ड अफसरों की ट्रंप से अपील – ‘भूख नहीं समझौता ज़रूरी है’

ग़ज़ा की हालत देख 600 से ज़्यादा रिटायर्ड इसराइली सुरक्षा अधिकारियों ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चिट्ठी लिख डाली। कहा – “अब हमास कोई बड़ा खतरा नहीं है, युद्ध रोकिए, बंधकों को वापस लाइए, और भूख से मरते लोगों को बचाइए।” ये चिट्ठी ज़रूर इंसानियत की आखिरी उम्मीद सी लगती है।

प्रधानमंत्री नेतन्याहू Vs भूख – कौन जीतेगा?

जहां एक ओर नेतन्याहू सैन्य कार्रवाई को और तेज़ करने की सोच रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बातचीत ठप है। सवाल ये है कि क्या बंदूकें जीतेंगी या भूखे पेटों की चीख? दुनिया देख रही है, लेकिन जो नहीं देख पा रहे वो हैं – जिनके पेट में कुछ भी नहीं है।

जब भूख से बड़ा बन गया युद्ध, तब मां की ममता हारने लगी

  • ग़ज़ा में कुपोषण सिर्फ मेडिकल समस्या नहीं, इंसानियत की हार है।

  • जब मां अपने लिए नहीं, अपने बच्चे के लिए खाना मांग रही है – तब सियासत को आइना देखना चाहिए।

  • अगर दुनिया अभी भी चुप है, तो अगला नंबर किसका है?

क्या आपके देश में हर दिन खाना बर्बाद हो रहा है? सोचिए, किसी को वही खाना ज़िंदगी दे सकता था। ग़ज़ा में नहीं रोटी है, न राहत – बस उम्मीद है।

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