
आजकल के स्कूलों में हेल्दी फूड पर PPTs, चार्ट्स, प्रोजेक्ट्स और भाषणों की भरमार है। “Eat healthy, stay fit” के स्लोगन हर बच्चे की डायरी में लिखे मिल जाएंगे। लेकिन जैसे ही लंच ब्रेक होता है, वही स्कूल कैंटीन में मिलता है – तेल में डूबा समोसा, मिर्ची से भरा पेटीज और ऊपर से बोतलबंद मीठा जहर यानी शुगर ड्रिंक!
फंक्शन का मतलब – सेहत को बाय-बाय?
किसी भी फंक्शन, पेरेंट्स डे या फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन के बाद, बच्चों को जो “ट्रीट बॉक्स” दिया जाता है, उसमें होता है – प्लास्टिक की शीशी में मीठा शरबत, बासी पेटीज और एक समोसा जो शायद पिछली रात फ्राई हुआ हो! और फिर सवाल ये – क्या ये है ‘स्वस्थ भारत’ का सपना?
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कहां गए वो हेल्दी स्नैक्स?
बाजरे के थेपले, स्प्राउट्स, फ्रूट बाउल, मखाना या होममेड लड्डू – सब किताबों में हैं, प्लेटों में नहीं! स्कूलों में ‘पढ़ाई’ और ‘प्रैक्टिस’ का इतना बड़ा फासला अब चौंका नहीं रहा, परेशान कर रहा है।
बच्चों की सोच बिगड़ रही है
जब बच्चों को हेल्दी फूड को “बोरिंग” और समोसे को “रीवार्ड” के रूप में दिया जाए, तो उनकी सोच किस दिशा में जाएगी? एक तरफ उन्हें न्यूट्रिशन का पाठ पढ़ाया जा रहा, दूसरी तरफ उन्हें परोसा जा रहा है वो खाना जो उनकी एनर्जी को खा रहा है।
समोसा हटाओ, सोच बचाओ!
स्कूल केवल किताबों से नहीं, उदाहरणों से सिखाते हैं। अगर स्कूल खुद ही जंक फूड परोसते रहेंगे, तो फिर बच्चे हेल्दी चॉइस करना कहां से सीखेंगे? वक्त आ गया है कि स्कूल अपनी थाली और थ्योरी दोनों को एक समान करें।