
अब देखीं न, एगो गुप्त सूत्र (जेकरा नाम से पूरा राजधानी काँपेला) कहले बाड़ें कि “तेजस्वी के राजनीति अब मूत्र समान हो गइल बा” – मतलब गंधदार, बेजान अउर सटक गइल।
बाकिर पत्रकार बिचारे… उ त अबहियो तेजस्वी के पीछे कैमरा, माइक अउर कंधा झूला लेके सटले बाड़ें।
“का जाने का दिन में तारा निकले!” – ई सोच के अबहियो सब माइकवा तेजस्वी के ठोड़ी से टकरात बा।
अगला सीएम – सपना की खुमार?
अब बात ई बा कि तेजस्वी अगला मुख्यमंत्री बन सकेला – एह लाइन से कुछ पत्रकारन के आंख में सपना ना, बलुक ‘आर-पार’ के मिशन दिखे लागल बा।
केहू कहता – “हम त पहिले से कहले रहनी…”
दोसर – “अबकी बार लालू परिवार से ही…!”
बाकिर सूत्र कहत बा – “राजनीति मूत्र हो गइल बा, धोइए से ना निकली!”
पत्रकार – निष्पक्ष कि नियोजित?
कुछ पत्रकार लोग त तेजस्वी के बगल में एतना दिन बितावले बा कि अब उकरा कपड़ा से तेजस्वी के पसीना के गंध आवे लागल बा।
अउर पूछी मत – पोस्टर भी बन गइले बा:
“तेजस्वी संग भविष्य के बिहार!”
सच्चाई त ई बा कि न्यूज़ रूम से ज़्यादा सेटिंग रूम गरम बा।
मूत्र से मुख्यमंत्री – मिरास या मिसगाइड?
अब पूछे के बात बा – अगर राजनीति मूत्र ह, त ओहसे सीएम कइसे बन जाई?
ई त वैसने बात हो गइल जैसे भैंस के गोबर से केक बनावे के सपना।
बाकिर बिहार राजनीति में कुछ भी संभव बा – ‘भावना बहा देला, अऊरी रिपोर्टर पोंछेला।’
मीडिया के मर्जी, तेजस्वी के तरजीह
बिहार के राजनीति में नैतिकता के मूत्र, कैमरा के धौंस, अउर सत्ता के खुमारी सब आपस में घुल-मिल गइल बा।
पत्रकार अब रिपोर्टर ना, बलुक सपना खोजे वाला सीएम स्काउट बन गइल बाड़ें।