
वाराणसी के एक छोटे से गांव छितौना में आधा बिस्वा ज़मीन, कुछ बांस, और खेत में मवेशी घुसने पर शुरू हुई मारपीट ने अब राजनीति के पांडवों को रणभूमि में उतार दिया है। 5 जून को हुई मामूली झड़प अब बन गई है पूर्वांचल की जातीय सियासत की ब्लॉकबस्टर स्क्रिप्ट।
लॉर्ड्स टेस्ट में भारत हारा, इंग्लैंड ने 22 रनों से हराया, सीरीज में 2-1 की बढ़त
संजय बनाम भोला से क्षत्रिय बनाम राजभर: ज़मीन के नीचे सियासत की जड़ें
संजय सिंह (क्षत्रिय) और भोला राजभर (राजभर समाज) के बीच हुई मारपीट अब जातिगत ध्रुवीकरण का मैदान बन गई है।
एक तरफ करणी सेना, क्षत्रिय महासभा, दूसरी ओर सुभासपा और ओमप्रकाश राजभर एंड संस।
कहानी अब सीधी नहीं रही, बल्कि जातीय झंडों और राजनीतिक लाउडस्पीकरों से लदी हुई है।
राजनीतिक ‘दंगल’: एनडीए के अपने ही पार्टनर बने सिरदर्द
-
सुभासपा = NDA पार्टनर
-
संजय सिंह = BJP बूथ अध्यक्ष
-
अरविंद राजभर = जुलूस के साथ इन-फेस्टिव मोड
-
करणी सेना = सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल चुकी
BJP की हालत वैसी हो गई है जैसे शादी में दोनों पक्षों के रिश्तेदारों से पंगा ले लिया हो।
वीडियो वायरल: “हमारे समाज के बारे में बोलोगे?”
अरविंद राजभर के छितौना मार्च में नारेबाज़ी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें क्षत्रिय समाज को लेकर अपशब्द थे।
अब वीडियो का जवाब मीम्स और केस दोनों से दिया जा रहा है।
पुलिस ने दो के खिलाफ केस दर्ज किया है, लेकिन सियासत का तापमान 45°C पर है।
करणी सेना का मार्च, DM की शांति बैठक, और हाउस अरेस्ट का ‘हौसला’
15 जुलाई को करणी सेना के गांव मार्च की घोषणा के बाद प्रशासन एकदम एक्टिव हो गया।
DM ने सबको गोल मेज पर बैठाया और जो न माने — उन्हें घर में ही बैठा दिया।
“हाउस अरेस्ट” का नया नाम अब हो गया है “लोकतांत्रिक आराम“।
2022 का दर्द और 2027 का डर: बीजेपी की रणनीतिक बेचैनी
-
2022 में राजभर वोट गया SP के साथ — बीजेपी हारी
-
अब अगर क्षत्रिय वोट नाराज़ हुआ — कहानी रिपीट
बीजेपी फंस गई है अपने ही दो कोर वोट बैंक के बीच।
“ना घर के रहे, ना घाट के” वाली स्थिति बनती दिख रही है।
कमेंट्री नहीं, कमेटी चाहिए: स्थानीय विवाद या राज्यव्यापी संदेश?
राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं:
-
ये केवल छितौना नहीं, UP के जातीय समीकरणों का लिटमस टेस्ट है
-
गगनयान लॉन्च हो या पंचायत चुनाव — हर वोटर अब ‘जाती’ से देखता है
आधा बिस्वा ज़मीन की कहानी में पूरा राजनैतिक भूचाल
छितौना का विवाद अब केवल FIR या पंचायत का मामला नहीं है — ये दिखाता है कि गांव का विवाद कैसे WhatsApp, Facebook और सियासी मंचों तक पहुंच कर पूरे प्रदेश को हिला सकता है।
इस पूरी घटना में एक बात साफ हो गई —
“ज़मीन चाहे आधा बिस्वा हो, मगर राजनीति पूरी हेक्टर में हो सकती है!”
स्पेस से लौटे शुभांशु, तिरंगे के साथ लाया बेटा जॉय का हंस भी