
कभी ‘बीमारू’ कहे जाने वाला बिहार अब हेल्थकेयर में देश का लीडर बन गया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की तरफ से जारी AVDMS डैशबोर्ड रैंकिंग में बिहार लगातार 11वें महीने टॉप पर रहा है।
अगस्त 2025 के लिए आए स्कोर में:
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बिहार – 82.13 अंक (1st)
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राजस्थान – 78.61 अंक (2nd)
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पंजाब – 73.28 अंक (3rd)
“जहां बाकी राज्यों में मरीज दवा खोजते हैं, वहीं बिहार में दवा खुद मरीज के पास आ जाती है।”
इलाज के साथ अब भरोसा भी मिलता है: 611 दवाएं मुफ्त में
बिहार सरकार अब सिर्फ इलाज नहीं, भरोसे की पुड़िया भी दे रही है — वो भी बिलकुल फ्री।
किस स्तर पर कितनी दवाएं?
केंद्र | OPD दवाएं | IPD दवाएं |
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मेडिकल कॉलेज | 356 | 255 |
जिला अस्पताल | 287 | 169 |
अनुमंडलीय अस्पताल | 212 | 101 |
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र | 212 | 97 |
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र | 201 | 93 |
शहरी PHC | 180 | – |
हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर | 151 | – |
स्वास्थ्य उपकेंद्र | 97 | – |
“अब डॉक्टर की पर्ची नहीं डराती, क्योंकि दवा मुफ्त में मिलती है।”
राजस्थान को पछाड़ा, सिलसिला पिछले साल से जारी
बिहार ने पिछले साल अक्टूबर 2024 में राजस्थान को पीछे छोड़ते हुए पहली बार टॉप रैंक हासिल की थी — 79.34 स्कोर के साथ।
तब से लेकर अब तक कोई राज्य बिहार को टक्कर नहीं दे पाया।
यह जीत सिर्फ स्कोर की नहीं, व्यवस्था की भी है।
रैंकिंग का आधार क्या है?
AVDMS डैशबोर्ड की यह रैंकिंग इन चीज़ों पर आधारित होती है- मरीजों को समय पर दवा उपलब्धता। अस्पतालों में दवाओं का स्टॉक लॉजिस्टिक सपोर्ट और ट्रैकिंग मरीजों की फीडबैक और संतुष्टि।

“यह नंबर वन की कुर्सी कागज़ से नहीं, काम से मिली है।”
नीति में पारदर्शिता + डिजिटल मॉनिटरिंग = पक्का सुधार
राज्य स्वास्थ्य समिति और स्वास्थ्य विभाग की डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली ने यह सुनिश्चित किया कि कहीं भी दवा की कमी ना हो।
अब हर अस्पताल की दवा स्टॉक रिपोर्ट रियल टाइम ट्रैक की जाती है।
“अब डॉक्टर के पास पहुंचने से पहले ही दवा पहुंच चुकी होती है।”
क्या कहता है बिहार का हेल्थ मॉडल?
बिहार का यह हेल्थ मॉडल देश के अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणादायक केस स्टडी बनता जा रहा है। जहां कई राज्य दवा बजट से परेशान हैं, वहीं बिहार में:
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जनता को मुफ्त दवा मिल रही है
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सिस्टम ट्रैकिंग से पारदर्शी बना है
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अस्पतालों की उपयोगिता बढ़ी है
बिहार अब दवा के मामले में “बीमारू” नहीं, “बीमारों का मसीहा” बन गया है! सरकारी अस्पतालों की छवि बदली है, और मरीजों को अब “बिल नहीं, दवा मिल” रही है।
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