आचार संहिता लागू! अब नेता बिना शिलान्यास के कैसे जिएंगे?

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

बिहार में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और इसके साथ ही आचार संहिता (MCC) लागू हो चुकी है।
चुनाव आयोग ने तारीखें तय कर दी हैं – 6 और 11 नवंबर को वोटिंग और 14 को नतीजे। लेकिन नेताओं की सबसे बड़ी चिंता ये नहीं कि जनता वोट देगी या नहीं – बल्कि ये है कि अब उद्घाटन कैसे करेंगे? फोटो किसके साथ खिंचवाएंगे?

MCC क्या है?

MCC यानी Model Code of Conduct, चुनावी मर्यादा का वो ‘नियमावली बम’ है जो लगते ही सरकार और नेताओं को याद दिलाता है कि अब “तू सरकार नहीं, एक कैंडिडेट है।”

No और Not Allowed: उद्घाटन और शिलान्यास पर ताला

अब कोई नया नाला हो या पुलिया, नेता उस पर नारियल नहीं फोड़ सकते। हर हाथ में नारियल लेकर घूमते नेताओं को अब क्या करना है, ये खुद उन्हें भी नहीं पता।

नई योजनाएं? भूल जाइए!

सरकार अब जनता से कह नहीं सकती – “हम आपको देंगे मुफ्त WiFi, नया मेडिकल कॉलेज और एक-एक काजू कतली!”
अब सबकुछ ठंडे बस्ते में, जैसे WhatsApp के Archived Chats।

सरकारी टूर? कैंसिल!

CM साहब के हेलिकॉप्टर अब केवल घर की छत पर उतर सकते हैं, रैली में नहीं। हर सरकारी दौरा अब ‘private affair’ बन चुका है।

Siren बंद, होर्डिंग गायब

सरकारी गाड़ियों के सायरन पर प्लास्टर लग चुका है, और चौक-चौराहों से CM के ‘विकास’ वाले पोस्टर हटा दिए गए हैं। अब पोस्टर भी सोच रहे होंगे, “हमने ऐसा क्या किया?”

No Ads Please, We’re Democratic!

सरकारी विज्ञापन? जी नहीं! टीवी, रेडियो, अखबार सब अब नेताओं के ‘Success Stories’ से फ्री रहेंगे। बस Netflix चालू रखिए।

रिश्वत? अब नहीं चलेगी

“नोटा वोटा लो” जैसी डील्स अब सीधे जेल के रास्ते ले जाती हैं। पकड़े गए तो कैंडिडेट्स को भी वोट देने के लिए लंबी लाइन में खड़ा होना पड़ेगा

कंट्रोल अब ECI के हाथ में

राज्य की सारी ताक़त अब चुनाव आयोग के पास – नेता अब “मैं कहता हूं…” की जगह “क्या मैं बोल सकता हूं?” पूछते नज़र आ सकते हैं।
रैलियों के लिए इजाजत? अब थाने से पास लेकर आइए, बाबूजी।

नेताओं की हालत MCC के बाद:

  • “इतने दिन बाद उद्घाटन का मौका आया था… और आचार संहिता लग गई!”

  • “हमारा पोस्टर तो ऑर्डर भी हो गया था…”

  • “क्या वोट बिना होर्डिंग देखे भी पड़ते हैं?”

अब जनता बोलेगी – “काम दिखाओ, पोस्टर नहीं!”

आचार संहिता यानी चुनावी मैदान में सभी के लिए समान नियम। अब वादे, योजनाएं और सरकारी तामझाम से ज्यादा, जनता को चाहिए असली एजेंडा। और नेताओं को चाहिए… थोड़ा धैर्य और बिना सायरन वाली गाड़ियां।

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