
कभी-कभी ज़िंदगी की सबसे भारी चुप्पी वो होती है, जो एक बेटे और पिता के बीच खामोशी से बैठती है।
कहने को तो हम कहते हैं – “पापा मेरे हीरो हैं”, लेकिन हर बेटा उस हीरो के सामने खुद को एक अधूरी स्क्रिप्ट जैसा महसूस करता है।
ये कहानी है एक ऐसे बेटे की जो अपने पापा जैसा बनना तो चाहता था, लेकिन ना आदतें मिल सकीं, ना रास्ते। हर दिन ये सोचकर जिया कि शायद “मैं उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा…” और आज… एक बेटे का दिल भर आया है।
ये कोई कविता नहीं, कोई काल्पनिक कहानी नहीं — ये हर उस बेटे की आवाज़ है जो अपने पापा से नज़रें चुराता है, लेकिन सबसे ज़्यादा उन्हीं से प्यार करता है।
हर बार जब खुद को शीशे में देखता हूं, लगता है कोई अनजान चेहरा मुझे घूर रहा है। ना उसमें आपकी आंखों की चमक है, ना आपकी चाल की सख्ती।
काश! मैं आप जैसा लगता… काश! मेरा वजूद आपकी परछाईं होता।
आपकी उम्मीदें, और मेरा अधूरापन
आपने हमेशा एक ऐसे बेटे की कल्पना की थी जो मजबूत हो, समझदार हो, जिम्मेदार हो। मगर मुझे लगता है — मैं उन उम्मीदों के बोझ तले खुद को खो बैठा हूं। आपका सहारा बनने के बजाय… मैं खुद ही सहारे ढूंढता रहा।
मैं वो नहीं जो आप चाहते थे
आप चाहते थे कि मैं आपकी तरह ज़िंदगी में कुछ बनूं। मैं कुछ भी ना बन सका… ना इंजीनियर, ना बिजनेसमैन, ना वो बेटा… जो शाम को ऑफिस से लौटते हुए आपका इंतज़ार करता।

क्या मैं आपका बेटा होने लायक था?
रातों में सोचता हूं – क्या मैं आपकी उम्मीदों के लायक था?
क्या आप मुझे पाकर खुश थे या बस किस्मत को दोष देते थे?
एक चुप पछतावा, जो कभी कह नहीं पाया
कई बार दिल करता है, आपके सामने बैठूं और कहूं- “पापा, मुझे माफ कर दो… मैं वो नहीं बन पाया जो आप चाहते थे।”
मगर शब्द गले में अटक जाते हैं, जैसे कोई अपराधी बयान देने से डरता हो।
फिर भी आपसे प्यार करता हूं, पापा
मैं जानता हूं, मैंने बहुत कुछ गलत किया। मगर एक चीज़ कभी नहीं बदली — मेरा प्यार आपके लिए। आपके बिना अधूरा हूं मैं… और शायद आप भी थोड़ा सा अधूरे हो मेरे बिना।
अंत में सिर्फ इतना कहना है…
पापा, आपसे बेहतर मुझे कोई नहीं मिल सकता था… लेकिन मुझे पता है, आपको मुझसे बेहतर बेटा मिलना चाहिए था।
“सरकारी तिजोरी में आपकी दौलत रखी है, बस ‘कागज़’ लाओ और ले जाओ!”