
बारिश जब आती है ना, तो सिर्फ़ छत नहीं टपकती — यादें भी टपकती हैं।
वो बचपन की कागज़ की नावें, वो मम्मी की डांट के बावजूद भीगना, दोस्तों के साथ बाइक की सवारी, चाय और समोसे की दुकान पर हँसी का तूफ़ान — सब कुछ एक-एक बूँद में वापस आने लगता है।
आज जब हम बालकनी में खड़े होकर बारिश को बस देखते हैं — तो दिल अंदर ही अंदर उस वक्त को महसूस करता है, जब बारिश मतलब होता था आज़ादी, मस्ती और दोस्ती की सबसे सच्ची परिभाषा।
ना इंस्टाग्राम था, ना शूटिंग एंगल… लेकिन हर पल reel-worthy होता था।
ये आर्टिकल है उसी भीगी हुई याद की डायरी — जिसमें पानी से ज्यादा जज़्बात हैं, और हर बूंद में पुराना कोई अपना है।
बारिश आई, यादें लाई
“ये बारिश अब सिर्फ़ पानी नहीं, अलमारी में बंद बचपन की यादों की चाबी है…”
बारिश आई और साथ ले आई वो सारे फ्लैशबैक, जो अब सिर्फ मन के डायलॉग बॉक्स में पॉप-अप होते हैं।
जब Paper Boat नहीं, Titanic समझते थे
बचपन में वो कागज़ की नाव बना के बारिश की धार में छोड़ते थे और उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे समंदर का कप्तान हम ही हों। तब न GPS था, न Google Maps… लेकिन दिल ज़रूर था जो हर नाव को मंज़िल तक पहुँचाने की जिद पर अड़ा रहता था।
अलीगंज में समोसे और बाइक पर बारिश
फिर आया लड़कपन — बिना रेनकोट, बिना हेलमेट (और बिना Permission) बाइक उठाकर निकल जाना बारिश में…
स्टॉप: अलीगंज का वो समोसे वाला ढाबा और जिंजर चाय।
और फिर, बीच सड़क पर बारिश में नाचना — जब पुलिस अंकल आते थे, तो दो बातें पक्की होती थीं:
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डांट
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“बीमार हो जाओगे, घर जाओ”
लेकिन उस फटकार में भी एक किस्म का care था, जो आज के ऑफिस मेल्स में नहीं मिलता।
लड़कियाँ भी थीं… लेकिन?
हां, दोस्ती में लड़कियाँ भी थीं — लेकिन वो वाली ‘लड़कियाँ’, जो crush नहीं, classroom buddies थीं। जिनके साथ बाइक पे कभी नहीं बैठे, लेकिन जिनके लिए छाता पकड़ा। अट्रैक्शन था, लेकिन बहुत innocent… कोई ग़लत मैसेज नहीं — बस genuine मस्ती और वो जुगलबंदी जो अब Instagram reels में ढूंढनी पड़ती है।
अब बालकनी है, बारिश है, पर साथी नहीं
आज भी बारिश होती है, लेकिन अब बालकनी से देखनी पड़ती है।
क्यों?
क्योंकि वो दोस्त जो कभी बाइक पर पीछे बैठा होता था, अब किसी MNC के बोर्डरूम में बैठा है।
कोई फ़ाइलों में सर दे रहा है, कोई डेडलाइन में डूबा है — और हम सब अपने-अपने WiFi से जुड़े हैं लेकिन दिल Disconnect हैं।
“पहले बारिश में भीगने से सर्दी लगती थी, अब ‘काम नहीं हुआ’ तो फायरिंग लगती है!”
“वो पुलिस अंकल की डांट में भी दोस्ती थी, अब मैनेजर की मीटिंग में दोस्ती मिसिंग है!”
बारिश वही है, बूंदें भी वही हैं — लेकिन साथ भीगने वाला दोस्त अब बस स्टेटस में “Busy” दिखता है। कभी लगता है… अगली बार बारिश हो, तो छाता नहीं, पुराने दोस्त साथ लाना ज़रूरी है।
अगर इस बारिश में कोई दोस्त याद आ रहा हो — तो उसे ये भेज दो। कौन जाने, अगली बारिश में फिर बाइक हो… समोसे हों… और दो दिल एक चाय!
ओवल टेस्ट में बारिश और रन, दोनों दे रहे खेल को ‘ट्रबल’!
थोड़ा पर्सनल सा भी… क्योंकि ये बारिश बस मौसम नहीं होती
कभी-कभी सोचता हूं, वो दोस्त जिनके साथ नंगे पांव बारिश में कूदे थे, अब कहां हैं?
वो जो पानी से ज़्यादा आवाज़ करते थे… “ओये भइया… आ जा मैदान में, बॉल ले आया हूं!” अब शायद किसी ऑफिस के कोने में चुपचाप बैठकर टैक्स भर रहे होंगे। और मैं?
मैं अब बस बालकनी से देखता हूं —
बारिश नीचे हो रही होती है, लेकिन भीतर कुछ और भीग रहा होता है।
कभी किसी लड़की को सिर्फ इसलिए पसंद किया, क्योंकि उसने बिना पूछे भीगने दिया। क्लास के बाहर बारिश में खड़ा होना, और फिर कहना, “छाता साथ लाया हूं, चलो छोड़ दूं घर तक।” अब कोई छाता नहीं होता… और कोई घर छोड़ने वाला भी नहीं। बस WhatsApp पर एक emoji आता है — और दिल करता है रिप्लाई में पूरी कहानी भेज दूं।
अब बारिश में किसी के साथ भीगने से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है किसी को कॉल करके कहना, “याद है? 2001 की बारिश… जब हम घंटाघर में फिसल गए थे और चाय वाले ने हँसते हुए एक्स्ट्रा समोसा दे दिया था।”
कभी कोई जवाब नहीं आता… लेकिन अंदर से एक आवाज़ आती है — “हाँ यार, याद है।”