
भारत सरकार ने बांग्लादेश से आने वाले कुछ “जूट आधारित प्रोडक्ट्स” की इंडिया में एंट्री पर एकदम नया ताला लगा दिया है। जी हां! अब कोई भी ब्लीच्ड-अनब्लीच्ड बुने कपड़े, रस्सी, डोरी, बोरियां या बैग ऐसे ही सरहद से उछलकर भारत नहीं आ पाएंगे।
अब Land Border पर नो एंट्री!
DGFT (Directorate General of Foreign Trade) की अधिसूचना के मुताबिक़, भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर मौजूद सभी लैंड पोर्ट्स इन सामानों के लिए अब “No Entry Zone” बन चुके हैं।
Translation for the confused trader:
अगर आप सोचे बैठे हैं कि चुपचाप से जूट की बोरी लेकर बंगाल बॉर्डर से टहलते हुए एंट्री करवा लेंगे, तो सरकार ने आपके प्लान पर टारगेटेड स्ट्राइक कर दी है।
“न्हावा शेवा Only Club” – Exclusive Access
अब से ये तमाम जूट-आधारित वस्तुएं सिर्फ़ और सिर्फ़ महाराष्ट्र के न्हावा शेवा पोर्ट से ही भारत में घुस पाएंगी। सरकार शायद चाहती है कि “जूट रस्सी” से जुड़ी हर चीज़ पहले समुद्र की हवा खाए, धूप में पके, फिर देश में दाखिल हो!
यह कदम क्यों? – कुछ कयास, कुछ कनेक्शन
हालांकि सरकार ने इस बदलाव का सीधा कारण नहीं बताया, लेकिन एक्सपर्ट्स की माने तो हो सकता है कि बांग्लादेशी जूट प्रोडक्ट्स की अत्यधिक सप्लाई से घरेलू उद्योग परेशान था। कुछ मामलों में डंपिंग की शिकायतें आई थीं। या फिर ये एक बड़ा प्लॉट है ताकि “न्हावा शेवा” को इंटरनेशनल जूट हब बनाया जा सके।
व्यापारियों की हालत – ‘रस्सी जल गई, गांठ नहीं गई’
जहां बांग्लादेशी सप्लायर्स थोड़े हैरान हैं, वहीं भारतीय व्यापारी एक नई चुनौती के लिए तैयार हो रहे हैं। कुछ का कहना है:

“अब तो हमें जूट की बोरियां पहले मुंबई भेजनी पड़ेंगी, फिर पूरे देश में। यानि बोरी का वजन नहीं, अब ट्रांसपोर्ट का खर्चा मारेगा!”
ये सिर्फ़ बोरियां नहीं, पॉलिसी की पोटलियाँ हैं!
इस पॉलिसी ने दिखा दिया कि सरकार अब व्यापार नीति को ले कर “tightening the rope” मूड में है। और अगली बार जब आप जूट की रस्सी या बोरी देखें, तो याद रखें – वो अब सिर्फ़ समुद्री रास्ते से होकर आई है।
और हां, अगर आप न्हावा शेवा पोर्ट के पास ज़मीन खरीदने का सोच रहे थे, तो बधाई हो – टाइमिंग सही है!
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