सत्ता बदली, बम फूटे! बांग्लादेश में फिर गूंजे ‘जिहाद चाहिए’ के नारे

अजमल शाह
अजमल शाह

आवामी लीग सरकार के जाते ही ऐसा लगता है जैसे बांग्लादेश के कुछ ‘पुराने दोस्त’ वापस छुट्टियों से लौट आए हैं — लेकिन इस बार नारे और पोस्टर के साथ! ढाका की बैतुल मुकर्रम मस्जिद में शुक्रवार की नमाज के बाद का नज़ारा देखकर किसी को भी लगेगा कि जिहाद अब सार्वजनिक सभा का नया फैशन हो गया है।

नारेबाज़ी: “कौन हैं हम? मिलिटेंट, मिलिटेंट!”

हिज्ब उत-तहरीर, विलायाह बांग्लादेश, अंसार अल-इस्लाम, और जमात-ए-इस्लामी जैसे आतंकी संगठन अब “अंडरग्राउंड” नहीं रहे। नहीं, ये लोग किसी गुफा से नहीं बल्कि मस्जिद के प्रांगण से निकले – पोस्टर लेकर, और गला फाड़कर।

“जिहाद चाहिए, जिहाद से जीना है!” – नारा नहीं, अब मानो नया राष्ट्रगान हो।

जेल से बाहर, सीधे जलसे में

300 से ज़्यादा आतंकी जिन पर उम्रकैद की सजाएं थीं, अब नज़र आ रहे हैं Freedom March 2025 में भाग लेते हुए। रिपोर्ट्स के अनुसार, ये सभी “जमानत पर” बाहर हैं — यानी कागजों पर तो अभी भी आरोपी हैं, पर व्यवहार में VIP!

पाकिस्तान कनेक्शन: अब दोस्ती पक्की?

जमात-उल-मुजाहिदीन, अंसारुल्लाह बांग्ला टीम, हमजा ब्रिगेड जैसे संगठनों के Ex-Members अब “Reunion Mode” में हैं। सोशल मीडिया पर #JihadIsBack ट्रेंड कर रहा है – और भारत में चिंता बढ़ती जा रही है।

जमात-ए-इस्लामी का जलसा: लोकतंत्र का मज़ाक या मज़ा?

जमात-ए-इस्लामी सुहरावर्दी उद्द्यान में ‘राष्ट्रीय रैली’ का आयोजन कर रही है। सफेद टीशर्ट पर “वोट दो तराजू को” छपा है – शायद ‘तराजू’ अब न्याय नहीं, उग्रवाद की ब्रांडिंग बन गया है।

“बांग्लादेश में लोकतंत्र एक उत्सव नहीं, एक प्रयोगशाला बन चुका है – जहां सत्ता परिवर्तन के साथ ‘उग्रवाद का सॉफ्ट लॉन्च’ हो रहा है।”

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