
जहां श्रीकृष्ण की लीला गूंजती है, वहां अब गूंज रही है नाराज़गी की आवाज़। वृंदावन में प्रसिद्ध कथावाचक अनिरुद्धाचार्य अपने महिलाओं पर दिए गए विवादित बयान को लेकर धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के निशाने पर आ चुके हैं।
“कथा में आए थे, कांड करके निकल गए” — यही कह रहे हैं ब्रजवासी, जो अब धैर्य की सीमा तक पहुँच चुके हैं।
क्या कहा था अनिरुद्धाचार्य ने? और क्यों मच गया बवाल?
एक धार्मिक आयोजन में अनिरुद्धाचार्य ने बयान दिया:
“25 साल की कुछ अविवाहित लड़कियों का चरित्र ठीक नहीं होता और 14 साल में शादी कर देनी चाहिए।”
अब चाहे ये क्लासिक कट-पेस्ट मिस्टेक हो या सोच की गहराई, लेकिन ब्रज में लोग इसे “संस्कारों का अपमान” मान रहे हैं।
महिला वकीलों ने मोर्चा संभाला, मथुरा बार एसोसिएशन में शिकायत दर्ज हुई, और सोशल मीडिया ने “बोलने से पहले सोचिए” मोड ऑन कर दिया।
माफ़ी से नहीं भरा दिल: क्यों ब्रजवासी अभी भी नाराज़ हैं?
अनिरुद्धाचार्य ने कहा:
“मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।”
लेकिन जनता ने जवाब दिया:
“तो क्या मुंह से गलती से ‘सत्यनारायण कथा’ की जगह ‘सुतली बम कथा’ निकल गई थी?”
माफ़ी मांगने के बावजूद न सारा गुस्सा गया, न सारा विरोध रुका।
ब्रज की चेतावनी सभा: ‘कथा से पहले भाषा सुधारें’
7 अगस्त को वृंदावन के कैलाश नगर स्थित गेस्टहाउस में श्रीबृजधर्माचार्य परिषद और श्रीकृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास ने चेतावनी सभा की।
अध्यक्ष पंडित बिहारी लाल वशिष्ठ ने दो टूक कहा:
“प्रसिद्धि और पैसा अगर भाषा बिगाड़े, तो ब्रजवासी माफ़ नहीं करेंगे।”
पंडित दिनेश फलाहारी बोले:
“ब्रज में अतिथि संतों को सम्मान मिला है, लेकिन संत को संत बनना भी आना चाहिए।”
11 सदस्यीय “संस्कार सुरक्षा समिति” का गठन
सभा में तय हुआ कि ऐसे विवादास्पद प्रवचनों पर अंकुश लगाने के लिए 11 लोगों की कमेटी बनाई गई, जिनमें:
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संत सुरेशाचार्य जी (पुष्टिमार्ग)
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राजेश पाठक (धर्माचार्य परिषद)
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विवेक महाजन (गरीब एकता दल)
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अंजली शर्मा (महिला सभा)
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साध्वी राधानंद गिरी (जूना अखाड़ा)
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और अन्य प्रमुख नाम शामिल हैं।
इनका मकसद है: “बोलने से पहले सोचें, सोचने से पहले संस्कार याद करें।”
नेताओं की प्रतिक्रिया: राजनीति भी हुई सक्रिय
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समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय ने कार्रवाई की मांग की
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प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना) ने कहा — “महिलाओं के सम्मान से समझौता नहीं”
यानी ये मुद्दा कथा से निकलकर संसद की चौखट तक पहुंच गया है।
संत की पहचान वाणी से होती है, वायरल से नहीं
ब्रजभूमि कहती है:
“जहां श्रीकृष्ण ने गीता में नारी सम्मान की बात कही हो, वहां कथावाचक को भी वही सीख माननी होगी।”
अनिरुद्धाचार्य को ये समझना होगा कि “माइक पर बोले गए शब्दों में वजन हो न हो, असर जरूर होता है।”
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