
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नया आदेश जारी किया है जिसके तहत उन प्राथमिक विद्यालयों को बंद किया जाएगा जिनमें छात्रों की संख्या 20 या उससे कम है। इन स्कूलों को पास के बड़े स्कूलों में मर्ज किया जाएगा।
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शिक्षक संगठनों का विरोध: भविष्य के साथ खिलवाड़
शिक्षक संगठनों ने सरकार के इस कदम का तीखा विरोध किया है। उनका कहना है कि सरकार जब विधानसभा में छात्र-शिक्षक अनुपात संतोषजनक बताती है, तो स्कूल बंद करने की क्या ज़रूरत है?
स्कूलों को बंद नहीं, सुधारिए!
सरकार को यह पूछना चाहिए कि बच्चों की संख्या कम क्यों है, बजाय इसके कि स्कूलों को बंद किया जाए। यह फैसला ग्रामीण शिक्षा की रीढ़ तोड़ने जैसा है।
छात्र और अभिभावकों पर असर
छोटे बच्चों को अब पढ़ाई के लिए दूर के स्कूलों में भेजना पड़ेगा, जहां तक जाने का कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है। इससे खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा क्योंकि अभिभावक उन्हें दूर भेजने से हिचकेंगे।
अखिलेश यादव का भावुक पोस्ट
सपा नेता अखिलेश यादव ने शिक्षकों और अभिभावकों के समर्थन में X (Twitter) पर पोस्ट किया,”मर्जर के बाद शिक्षकों की संख्या घटेगी, बच्चियाँ स्कूल जाना छोड़ देंगी। ये निर्णय सिर्फ आंकड़ों के लिए है, संवेदना सरकार में नहीं बची है।“
उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह शिक्षकों की समस्याओं को नजरअंदाज़ कर रही है और कहा कि यह “हृदयहीन सरकार” है।
सरकार की मंशा या आंकड़ों की बाज़ीगरी?
सरकार का कहना है कि कम संख्या वाले स्कूलों का मर्जर प्रशासनिक और संसाधन संतुलन के लिए ज़रूरी है। लेकिन ज़मीनी हकीकत ये है कि:
कई स्कूलों में आज भी बिजली, पानी, शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।
अधोसंरचना सुधारने के बजाय स्कूल बंद करना बच्चों को शिक्षा से वंचित करने जैसा है।
मर्जर के बाद छात्र संख्या के आधार पर नवीन शिक्षक भर्ती भी प्रभावित होगी।
शिक्षा बजट तो बड़ा है, स्कूलों की हालत क्यों नहीं सुधरी?
यूपी सरकार ने 2025 में शिक्षा के लिए ₹70,000 करोड़ से अधिक का बजट रखा है। बावजूद इसके, कई बेसिक स्कूल आज भी खस्ताहाल हैं।
जहां शौचालय हैं भी, वो उपयोग लायक नहीं हैं — यह महिला स्टाफ और छात्राओं के लिए बड़ी बाधा है।
समाधान मर्जर नहीं, मजबूती है
अगर सरकार सच में शिक्षा को लेकर गंभीर है, तो उसे चाहिए कि:
गाँवों में स्कूलों की गुणवत्ता सुधारे
शिक्षकों की नई भर्ती करे
बच्चों की उपस्थिति और सुविधा पर ज़ोर दे
हर गाँव को उसका अपना स्कूल दे — क्योंकि हर बच्चा शिक्षा के अधिकार का हकदार है।