
कोयला घोटाले की स्याही अब भी सूखी नहीं थी कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन बड़े नामों को जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया। मगर ट्विस्ट ये है कि ये रिहाई मिली है कंडीशन के साथ – “बाहर जाओ, लेकिन छत्तीसगढ़ मत जाओ।”
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रानू साहू, समीर विश्नोई और सौम्या चौरसिया अब “ज़मानती टूर” पर हैं – लेकिन अपने ही राज्य में नज़र नहीं आएंगे।
570 करोड़ की कोयला कमाई: पर ट्रक चलता था ‘परमिट से नहीं, परचून से’
ईडी का आरोप है कि ये घोटाला “कोयला नहीं, काला कमाल” था। सिंडिकेट ने हर टन कोयले पर ₹25 का ‘परमिट टैक्स’ वसूला, और वो भी मैनुअल परमिट सिस्टम लागू करके — यानी डिजिटल इंडिया छोड़कर डील-इंडिया।
कम से कम 570 करोड़ की वसूली हुई, ऐसा ईडी का दावा है – और इसमें अफसर, व्यापारी और कुछ नेता भी “कोल-बोररेटेड” थे।
कौन हैं ये घोटाले के VIP खिलाड़ी?
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सौम्या चौरसिया: तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल की उप सचिव।
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समीर विश्नोई: खनन विभाग के निदेशक।
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रानू साहू: कोयला क्षेत्र की कलेक्टर।
तीनों का रोल घोटाले में ऐसा था जैसे IPL में टीम मालिक – पैसे आ रहे थे, मैच फिक्स थे, और स्कोर हमेशा ऊपर।
सुप्रीम कोर्ट की बेल, लेकिन भरोसे के साथ बेलन भी
कोर्ट ने ज़मानत दी, पर कहा:
“राज्य से बाहर रहो ताकि गवाहों पर कोई असर न पड़े।”
यानी जेल से निकले, पर GPS चालू रहेगा।
अब ये अधिकारी छत्तीसगढ़ में नहीं, “कोयले की छाया से बाहर” रहेंगे।
गिरफ़्तारी का घुमावदार ट्रैक: जेल में रहो या कोर्ट में – केस पीछा नहीं छोड़ता
हालत ये थी कि जेल में रहते-रहते ही फिर से गिरफ़्तार कर लिए गए थे।
जैसे कि घोटाला बोल रहा हो –
“तू जहां-जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा!”
2024 में नए सिरे से अपराध दर्ज हुआ और 35 लोगों पर केस फिर से शुरू किया गया।
कोयला से कमाया तो था बहुत, अब कोर्ट की धूप में तपाई हो रही है
छत्तीसगढ़ का कोयला सिर्फ बिजली नहीं बना रहा – अब ये राजनीतिक ताप और न्यायिक झटकों का भी स्रोत बन गया है।
अब देखना ये है कि जमानत से बाहर आए चेहरे, अगला स्टॉप बाइज्ज़त बरी बनाते हैं या बैक टू बैरक?
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