
आज पंचायती राज दिवस के मौके पर बात करेंगे एक ऐसे सरपंच की जिन्होंने न सिर्फ अपने गांव को बदला, बल्कि देश और विदेशों में भी पंचायती राज को एक नई पहचान दी। हरियाणा के बीबीपुर गांव से ताल्लुक रखने वाले सुनील जागलान आज प्रोफेसर, सलाहकार और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मॉडल के जनक बन चुके हैं।
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डिजिटल पंचायती की शुरुआत: जब गांव इंटरनेट से जुड़ा
2010 में बीबीपुर को देश की पहली डिजिटल पंचायत बनाने वाले सुनील जागलान ने गांव की वेबसाइट बनाकर एक साहसी कदम उठाया, हालांकि इसके लिए उन्हें प्रशासन की नाराजगी, नोटिस और जांचों का सामना करना पड़ा। लेकिन आज यह मॉडल देशभर में लागू हो चुका है
महिला सशक्तिकरण की अलख: महिला ग्राम सभा से ‘बेटी बचाओ’ तक
बीबीपुर में देश की पहली महिला ग्राम सभा का आयोजन करने वाले जागलान ने महिलाओं की पंचायत भागीदारी को मजबूत किया। इसका असर ऐसा रहा कि केंद्र सरकार ने 2012 में इसे सभी पंचायतों में अनिवार्य कर दिया। यहीं से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी राष्ट्रव्यापी योजना की नींव पड़ी।
लाडो पुस्तकालय: गांव की लड़कियों के लिए ज्ञान की चौपाल
2013 में स्थापित ‘लाडो पुस्तकालय’ ने ग्रामीण बालिकाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का मौका दिया। प्रशासन ने पहले इसे पंचायती नियमों के खिलाफ बताया, लेकिन आज यह मॉडल देश भर के गांवों में दोहराया जा रहा है।
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सामाजिक अभियानों की श्रृंखला: जो बनीं आंदोलन
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‘सेल्फी विद डॉटर’, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने सराहा।
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‘बेटियों के नाम नेमप्लेट’, जिससे महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को बल मिला।
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‘पिरियड चार्ट’, ग्रामीण भारत में मासिक धर्म को सामान्य बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम।
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‘लाडो पंचायत’, ‘लाडो गो ऑनलाइन’, ‘21 साल की शादी’ अभियान, जिनकी देश-विदेश में सराहना हो रही है।
बीबीपुर मॉडल: जो अब 7 राज्यों और नेपाल में गूंज रहा है
सुनील जागलान अब तक 10,000 से अधिक गांवों की यात्रा कर चुके हैं और 149 गांवों को गोद ले चुके हैं। उनके बीबीपुर मॉडल को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, हिमाचल, उत्तराखंड और नेपाल जैसे क्षेत्रों में लागू किया जा चुका है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान: जब संयुक्त राष्ट्र और राष्ट्रपति ने सराहा
उन पर बनी डॉक्यूमेंटरी ‘सनराइज़’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और संयुक्त राष्ट्र द्वारा 73 देशों में दिखाया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके मॉडल को 100 गांवों में लागू करवाया और 50 लाख रुपये का अनुदान दिया।
पंचायती राज के असली चैंपियन
सुनील जागलान ने यह साबित किया है कि एक सरपंच भी राष्ट्र निर्माण का नायक हो सकता है। उन्होंने साबित किया कि पंचायतें सिर्फ नल-गली नहीं, सोच और समाज बदलने का माध्यम बन सकती हैं।
पंचायती राज दिवस पर भारत को चाहिए 1000 सुनील जागलान, ताकि गांवों से शुरू होकर देश एक विकसित राष्ट्र की ओर अग्रसर हो सके।