असम में ST बवाल! आदिवासी बोले—“कोटा नहीं काटने देंगे”

Lee Chang (North East Expert)
Lee Chang (North East Expert)

असम में छह नई जनजातियों को Scheduled Tribes (ST) में शामिल करने की प्रस्तावित सिफ़ारिश ने बड़े पैमाने पर विरोध भड़का दिया है। राज्यभर के कई आदिवासी समुदायों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने यह प्रस्ताव आगे बढ़ाया, तो तेज आंदोलन शुरू किया जाएगा

ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की इंटरिम रिपोर्ट सामने आने के बाद असम के कई हिस्सों—खासकर गुवाहाटी, बोडो बहुल इलाकों और कार्बी-आंगलोंग—में रविवार को ज़ोरदार प्रदर्शन हुए।

क्यों विरोध कर रहे हैं आदिवासी समुदाय?

असम में फिलहाल 14 ST समुदाय हैं और इनका कहना है कि ST सूची बढ़ने से उनका मौजूदा आरक्षण कोटा कम हो सकता है।

26 ट्राइबल संगठनों की कोऑर्डिनेशन कमेटी ने स्पष्ट कहा— “यह सिफारिश किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं होगी।”

छात्रों का Secretariat में घुसकर हंगामा

शनिवार को स्थिति और गरम हो गई जब बोडोलैंड यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों के छात्र कोकराझार स्थित Bodo Territorial Council (BTC) Secretariat के अंदर घुस गए और विरोध किया।

कमेटी के नेता आदित्य खाखलारी ने कहा—“मुख्यमंत्री से बैठक है। अगर सकारात्मक नतीजा नहीं निकला, तो बड़ा आंदोलन होगा।”

CM हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा—‘गलतफहमी दूर करेंगे’

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने प्रतिक्रिया दी— “हम कोऑर्डिनेशन कमेटी को चर्चा के लिए बुलाएंगे और उनकी चिंताएं दूर करने की कोशिश करेंगे।”

सरकार का संकेत है कि इस मुद्दे पर संवाद जारी रहेगा, लेकिन तनाव अभी कम होता नहीं दिख रहा।

कांग्रेस का रुख—‘6 नई जनजातियों को ST मिले, पर मौजूदा हक नहीं कटे’

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने एक्स पर लिखा— “कांग्रेस छह नए समुदायों को ST दर्जा देने का समर्थन करती है, लेकिन मौजूदा समुदायों के अधिकारों पर असर नहीं होना चाहिए।”

किन छह समुदायों को ST दर्जा देने की योजना है?

सरकार जिन छह समूहों को ST में शामिल करना चाहती है, वे हैं:

  • ताई अहोम
  • चुटिया
  • मोरन
  • मट्टक
  • कोच-राजबोंगशी
  • चाय-बागान आदिवासी समुदाय

इनमें कुछ समूह दशकों से ST स्टेटस की मांग करते आए हैं।

राज्य में बढ़ता तनाव—क्या समाधान निकलेगा?

मौजूदा ST समुदाय आरक्षण घटने की आशंका से चिंतित हैं, जबकि नए समुदाय ST टैग की मांग पर अड़े हैं।
सरकार संवाद का भरोसा दे रही है, लेकिन दोनों पक्षों की कड़ी स्थिति से यह मुद्दा असम की राजनीति में बड़ा टकराव बन चुका है।

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