
आरएसएस को मार्च निकालना है – चाहे सितारे ठीक हों या तारीख़ टेढ़ी। 19 अक्तूबर को चित्तपुर प्रशासन ने जब कह दिया – “ना बाबा ना, अभी टाइम सही नहीं है,” तो आरएसएस ने सीधा हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा दिया।
कोर्ट का समाधान – “ठीक, 2 नवम्बर चलो!”
कर्नाटक हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच (क्योंकि मामला ‘सामान्य’ ना था) ने एकदम दार्शनिक अंदाज़ में पूछा: “तारीख़ बदल लें तो चलेगा क्या?”
सीनियर वकील अरुण श्याम बोले: “2 नवंबर को निकाले देते हैं मार्च, तब तक मौसम भी ठंडा होगा, माहौल भी।”
चित्तपुर प्रशासन के अनुसार – “मार्च निकला, तो शांति हिल जाई, पुलिस फुल-टेंशन में आ जाई।”
अब सवाल ये है – का मार्च के साथ-साथ माइंड भी वॉक पर जाई?
कोर्ट की चतुराई बनाम प्रशासन की सतर्कता
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कोर्ट: “संविधान कहता है – मार्च मने अधिकार।”
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प्रशासन: “समाज कहता है – मार्च मने विवाद।”
दोनों अपनी-अपनी जगह सही… बाकिर बीच में जनता सोच में पड़ गई – “हमके पूछल जाला कब?”
2 नवम्बर – अब बनल बा ‘संघ’ का नया दही-हांडी!
अब 2 नवंबर को चित्तपुर में ‘शांति’ के साथ ‘संघ’ का मार्च निकले वाला बा –अर्थात् दही हांडी टूटेगी या प्रशासन की टेंशन बढ़ेगी, समय बताएगा।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने साफ कह दिया – “आपके पास अधिकार है, लेकिन टकराव से दूर रहिए।”
मतलब – मार्च निकाले के आज़ादी बा, पर माइंडफुलनेस जरूरी बा।
“आरएसएस कहता है – कदम से कदम मिलाकर चलो, प्रशासन कहता है – पहले अनुमति, फिर अनुशासन!”
“टिकट नहीं मिला? तो समझिए जात, धर्म या जुगाड़ में थोड़ी कमी रह गई!”