मिया! हम लखनऊ वाले हैं, चिकन खाते भी हैं और पहनते भी हैं, मिलो फुर्सत में

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

लखनऊ के लोग दुनिया को तहज़ीब सिखाते हैं, और जब बात चिकन की आती है… तो भाई साहब, ये कोई एक शब्द नहीं, दो अलग-अलग एहसास हैं

एक चिकन आपको ज़ायका देता है, दूसरा चिकनकारी आपको शान देता है। और लखनऊ वाले दोनों को पूरे नवाबी स्टाइल में अपनाते हैं।

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चिकन — जो ज़ुबान पे आता है

लखनऊ की चिकन बिरयानी, टुंडे कबाब और गलावटी का क्या ही कहना! यहां चिकन नॉनवेज सिर्फ खाने का नहीं, खानदानी स्टेटस का भी हिस्सा है।
“भाई साहब, हमारे यहां चिकन इतना नाज़ुक होता है कि हड्डी से पहले पिघलता है!”

चिकनकारी — जो बदन पे सजता है

दूसरा चिकन… यानी चिकनकारी! लखनऊ की मशहूर हाथ की कढ़ाई, जो कुर्तों, दुपट्टों, और यहां तक कि साड़ियों को भी राजसी लुक दे देती है।

“चिकनकारी पहनकर इंसान नजाकत में इतना घुल जाता है कि लोग पूछते हैं, ये चलते कैसे हैं?”

चिकन और चिकनकारी: ये जोड़ी है बेमिसाल

लखनऊ के शादी-ब्याह में एक ट्रेंड देखा गया है— लड़का चिकनकारी कुरता पहनकर चिकन कबाब के स्टॉल पर खड़ा होता है।

मतलब, स्टाइल भी वहीं, स्वाद भी वहीं।

चटनी भी थोड़ी सी

  • दिल्ली वाले पूछते हैं: “भाई चिकन पहनते कैसे हो?”
    लखनऊ वाला जवाब देता है: “दिल में नफासत होनी चाहिए, बाकी तो सिलाई वाले से सिलवा लो।”

  • ज़माना फास्ट फैशन का है, लेकिन लखनऊ आज भी चिकनकारी के हर धागे में सब्र और हुनर बुनता है। यहाँ ब्लैक फ्राइडे सेल से ज़्यादा ईद की नमाज़ के बाद वाला चिकन कुरता चलता है।

गूगल मैप्स में टाइप करें: “लखनऊ में बेस्ट चिकन बिरयानी” या “ऑथेंटिक चिकनकारी दुकान” — और फिर दोनों जगह जाकर, लखनऊ को दिल से समझें।

अंत में…

लखनऊ कोई आम शहर नहीं है जनाब, ये तो एक सलीका है, स्वाद है और स्टाइल है। यहां के लोग सिर्फ खाना नहीं जानते, खुद को पेश करना भी जानते हैं। चिकन हो या चिकनकारी — दोनों में नज़ाकत लखनवी ही होती है।

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