
1966 की फिल्म दिल दिया दर्द लिया दिलीप कुमार का वो इमोशनल प्रोजेक्ट था, जिसमें उन्होंने ना सिर्फ एक्टिंग की बल्कि डायरेक्शन में भी हाथ डाला। सोचा था “हीथक्लिफ़” बन कर इतिहास रचेंगे, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इतिहास ही ग़ायब हो गया।
रेट्रो रिव्यू: “वो कौन थी?” – और आज तक किसी को नहीं पता
फिल्म का नारा होना चाहिए था –
“दिल दिया, दर्द लिया… पर टिकट के पैसे वापस नहीं मिले।”
वुथरिंग हाइट्स इन देसी टाइप
एमिली ब्रोंटे के डार्क, इंटेंस और पागलपन से भरे उपन्यास Wuthering Heights को जब बॉलीवुड ने अपनाया, तो शंकर बना हीथक्लिफ़, रूपा बनी कैथरीन, और प्राण बन गए ग़ुस्से का पुतला।
लेकिन दुख इस बात का है कि जब कहानी इंग्लैंड की मूडी पहाड़ियों से निकल कर बेलापुर के महल में पहुँची, तो इमोशनल डेप्थ की जगह म्यूजिकल दर्द ने ले ली। यानी साहित्य का ट्रेजिक हीरो बॉलीवुड का “गाना-सुनाऊं-या-बदला-लूं” हीरो बन गया।
कहानी में ट्विस्ट कम, थप्पड़ ज़्यादा
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शुरूआत तूफान से होती है, यानी फिल्म ने संकेत दे दिया था कि दर्शकों का हाल क्या होने वाला है।
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अनाथ शंकर को ज़मींदार पालते हैं, लेकिन सौतेला भाई रमेश (प्राण) उसका रोज़ाना हेल्थ डिपार्टमेंट से जुड़ा हाल कर देता है।
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शंकर और रूपा प्यार में पड़ते हैं, लेकिन “रमेश” नाम का आदमी कोई फिल्म में हो तो समझ जाइए – प्यार की गारंटी खत्म।
परफॉर्मेंस – दिलीप कुमार: ट्रेजडी का ट्रेलर
दिलीप साहब ने वही किया जिसमें वो मास्टर थे – दुख, सिसकियाँ, मौन प्रेम और ग़ज़ब का पीनापन। लेकिन फिल्म इतनी भारी हो गई थी कि ऐसा लगा जैसे EMI पर इमोशन्स लिए हों और अब बकाया वसूल हो रहा हो।
वहीदा रहमान, जितनी खूबसूरत लगीं, उतनी ही कम स्क्रीनप्ले में उनकी भूमिका रही – मानो एक सजी-सजाई ट्रेजिक डॉल हों।
म्यूज़िक – नौशाद ने जो दर्द रचा, वो आज भी प्लेलिस्ट में जिंदा है
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“कोई सागर दिल को बहलाता नहीं…” – सुन कर ऐसा लगता है जैसे Rafi साहब ने दिलीप कुमार की पूरी फिल्मी तकलीफें गाकर निकाल दीं।
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“फिर तेरी कहानी याद आई…” – इतना दर्द कि Spotify को Kleenex का स्पॉन्सर बनाना पड़े।
संगीत ही फिल्म का Emotional Insurance था – जिसमें केवल गानों में राहत थी, बाक़ी तो बस पीड़ा थी।
बॉक्स ऑफिस पर क्यों लिया दर्द?
फिल्म के डायलॉग्स, पटकथा और डायरेक्शन इतने क्लासिक थे कि दर्शकों को समझ नहीं आया कि रोएं या उठ कर थिएटर छोड़ दें। दिलीप कुमार की ये पहली फ्लॉप थी 15 सालों में — एक रेकॉर्ड, लेकिन wrong reasons के लिए।
विरासत – प्रेरणा तो बनी, पर हिट नहीं
इस फिल्म ने आगे चलकर पाकिस्तानी फिल्म “देहलीज़” (1983) और हिंदी फिल्म “ऊँचे लोग” (1985) को प्रेरित किया। लेकिन शायद उन्होंने समझदारी से दुख के डोज़ को डाइल्यूट कर दिया।
इस फिल्म को देखिए, लेकिन Aspirin के साथ
अगर आप Wuthering Heights के फ़ैन हैं, और सोचते हैं कि इसका देसी वर्जन देखना चाहिए – तो हाँ, देखिए। लेकिन साथ में ग़म का जूस और थोड़ी मिर्ची वाली समझ साथ रखें।
क्योंकि यहाँ दिल मिलता नहीं,
और दर्द… वो तो ऑफर में है ही।
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